Sunday, October 31, 2010

एक नई आशा..

"हॉस्पिटल का वातावरण ही कुछ ऐसा होता है जहां जाते ही दिल घबराने सा लगता है..जैसे मंदिर में जाने से खुद ही दिल को शांति सी लगती है वैसे ही हॉस्पिटल में जाने से खुद ही घबराहट शुरू हो जाती है..चारों ओर एम्बुलेंस रहती है कितने लोग रोते रहते है..कोई अकेले अकेले बाते करते रहते है..
आज मीनू का हॉस्पिटल जाना हुआ .. उसकी बेटी की सास की तबियत ठीक न होने से उन्हें भर्ती किया था..बेटी की शादी की हुए अभी ३ महीने हुए थे..जब बेटी और दामाद घूम के वापस आये..१० दिन सब घर का काम बता कर सास और ससुर गावं में खुद के दूसरे घर चले गए..इस बहाने कि बेटे और बहु को थोड़ा अकेले घर में साथ वक्त बिताने का मौक़ा मिले.. पर गावं में जाने के १५ दिन में ही सास को बहुत तेज बुखार आया.. दवाईयाँ की पर कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था. तो उनको वापस मुंबई लाया गया. खुद की बीमारी से ज्यादा उनको ये दुःख था की नयी दुल्हन को अभी से ये सब परेशानिया आ गई थी..जब मीनू उसके पास पहुंची , तो बस वो,ये ही बात कहे जा रहे थे कि मै क्यों बीमार हुई..और उनका ये सरल स्वभाव देखकर मीनू को बेटी की किस्मत पर गर्व हो रहा था..की उसे कितने अच्छी सासू जी मिली हैं ...
दो घंटे मीनू उनके पास बैठी रही.. फिर जब वो घर जाने लगी तो लिफ्ट बंद होने के कारण उसको सीडिया से नीचे उतरना पडा. ७ मंज़िल उसे उतरनी थी, वो आहिस्ता आहिस्ता सब की तकलीफ़ देखकर वो उतर रही थी. कहीं बेटी माँ के लिये रो रही थी कहीं माँ बेटी के लिये. कितनी तकलीफ़ थी यहाँ सब के चेहरे पर...

जब तक हम घर से बाहर नहीं निकलते हमें पता ही नहीं चलता की कितनी परेशानियाँ है लोगो को..सीडिया उतरते उतरते उसने देखा सामने से तीन आदमी एक महिला का हाथ पकड़ कर उसे आहिस्ता सीडिया चढ़ा रहे थे...मीनू को ऐसा लगा की जैसे उसने उस महिला को कही देखा है.. जैसे जैसे वो लोग नज़दीक आ रहे थे वैसे उसे याद आ रहा था ..और उसे याद आया की ये तो उसकी सहेली जो स्कूल में उसके साथ पढ़ती थी वो स्मिता .. वो चारो उसके बाज़ू में से ऊपर निकल गए..वो बस देखती ही रह गई..उसके मुँह से एक शब्द बाहर ही नहीं आ रहा था
आगे जा कर उसमे से एक पुरुष का ध्यान पीछे मीनू की और गया.. तभी मीनू ने पूछा " ये स्मिता ही है न ?" उसमे से एक पुरुष ने जवाब दिया" हां पर मैंने आपको पहचाना नहीं.."
मीनू ने जवाब दिया " मै और स्मिता स्कूल में साथ में पढ़ते थे.पर उसे ये क्या हुआ है..?"
वो पुरुष ने जवाब दिया " अगर आपको वक्त है तो १० मिनिट ठहरिये ,,मै स्मिता को डॉक्टर के रूम में छोड़कर आऊ.
मीनू ने कहा" ठीक है मै इंतजार कर रही हूँ "
वो तीनों वापस स्मिता को लेकर चलने लगे..
वही ऊपर जा के मीनू एक सीट पर बैठ गई..और उसे अपने स्कूल के दिन याद आ गए.. टीचर को परेशान करना स्मिता का सबसे बड़ा शौक था..सबकी नक़ल करना उसे बखूबी आता था...उसके साथ रजा के दिनों में जुहू बीच पर जाना या पिक्चर देखने जाना और मस्ती करना ये अलग ही बात थी. स्कूलका जीवन ख़तम हुआ और कॉलेज में दोनों की अलग लाइन थी तो अलग कॉलेज में दाख़िला मिला..और जिंदगी में नए दोस्त आ गए..और पुराने दोस्तों को भूलते गए .आज मीनू को अफ़सोस हो रहा था की हम क्यों पुराने दोस्तों की खबर नहीं लेते.. .
अब i वो सोच ही रही थी की बात करने वाला पुरुष जो स्मिता के साथ था वो उसके करीब आया..उसके बाजू में बैठा और उसने बोलने का शरु किया.." मै तो आपको नहीं पहचानता.. पर आपने कहा की स्मिता आपकी स्कूल की दोस्त हैं ....

स्मिता पिछले २० साल से इस हालात से गुज़र रही है.. उसे खुद का भी कोई होश नहीं है..वो क्या कर रही है उसे कुछ पता नहीं चलता..न वो किसीको मुझे भी नहीं पहचानती ..मै उसका पति समीर हूँ
मीनू ने बीच मे ही प्रश्न पूछ लिया की "ऐसा हुआ कैसे?"
समीर ने कहा " हमारी शादी के एक साल में हमें एक बेटा हुआ .. बहुत खुश थी स्मिता..की पहली ही बार में भगवान् ने उसे बेटा दे दिया..पर डेढ़ साल बीतने पर पता चला की बेटा सुन नहीं सकता.फिर पता चला वो बोल भी नहीं सकता..तब तक हमें दूसरा बच्चा होने वाला था.. अब वो दूसरे बच्चे की आशा में जी रही थी..
नौ महीने के बाद दूसरा बेटा आया.. पहले ही दिन से वो उसके आजू बाज़ू बस आवाज करके देख रही थी की वो सुन सकता है या नहीं..पर हमारी किस्मत ख़राब की दूसरे बेटे को भी वो ही तकलीफ आई..और जब स्मिता को ये बात का पता चला वो टूट गई..
और ऐसी बीमार पड़ी की बस वो खुद को ही भूल गई.."
मीनू ने पूछा " तो क्या इस रोग का कोई इलाज नहीं है.."
समीर ने कहा " २० साल से तो मै सिर्फ ये ही काम कर रहा हूँ पर कोई फर्क नहीं..ये जो मेरे साथ थे वो हमारे दो बेटे है..जो बोल और सुन नहीं सकते..पर आज उनकी शादी भी हो गई है..पर मुझे मेरी पत्नी वापस नहीं मिली.."
तभी ही डॉक्टर .ने समीर को आवाज़ दी और कमरे में बुलाया.समीर ने तुरंत एक पेपर में कुछ लिखा और मीनू को देते हुए कहा" ये हमारा पता है, कभी हो सके तो हमारे घर स्मिता के पास बैठने शायद आपको देखकर उसे आपकी स्कूल की बाते याद आ जाए और वो ठीक हो जाए.." इतना कह कर वो डॉक्टर के पास चला गया..
पता हाथ में पकडे मीनू सोच रही थी की कैसा इंसान है ये..खुद ही कहता है की कोई इलाज ही नहीं है..और खुद ही और एक नई आशा को खुद के मन में जन्म दे के गया..शायद ये ही मानव मात्र का स्वभाव है..

Wednesday, October 27, 2010

मालतीबेन सरैया..

आज ८ मार्च जो महिला दिन के नाम से सब मनाते है..१५ दिनों से मालती को कितने फोन आ रहे थे की उनके प्रोग्राम में वो अतिथि -विशेष बनके जाए..पर मालती को ये दिन ही नहीं पसंद था. उसे गुस्सा आता था क्यों ये दिखावा..?
जब कोई पुरुष किसी महिला को कभी सम्मान देता ही नहीं तो भी ये दिन मनाने का ? और उनको सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात से था कि उस प्रोग्राम में पुरुष सदस्य भी होते थे..
पर आज जिनका फोन आया था उन्हें न कहना मुश्किल था.. क्योकि ये ही वो इंसान थे , जिन्होंने अपने पेपर में उनकी पहली कहानी छापी थी और तब से उसे लोगो ने पहचाना था..
फिर वो खुद की शर्तो पे ही वो जाने को तैयार हुई..मालती जानती थी की उसे कही न कही तो जाना ही पडेगा..नहीं तो ऐसे ही फोन आते रहेंगे..
और उसने "स्त्रीत्व संस्था " वालो को हाँ कह दी ..
मालती को पता था वहाँ बहुत बड़े बड़े महानुभाव आएंगे .."स्त्रीत्व सस्था " वालो को भी पता था की मालती सरैया मतलब आग उगलने वाली इंसान ..मालती को खुद को इस बात का अचरज था कि क्यों फिर भी लोग उसे पसंद करते थे.. पर उसने सोचा ठीक है चलो हमें तो अपना काम करना है और निकल जाना है.."स्त्रीत्व सस्था " वालो को भी पता था की अगर किसीको भी पता चल गया की मालती सरैया आने वाली है तो आधे लोग निकल जायेंगे,इसीलिए किसीको बताया नहीं गया था.
शाम हुई .प्रोग्राम का हॉल पूरा भरा हुआ था..ये प्रोग्राम टीवी में लाइव दिखाने वाले थे तो बड़े लोग भी ज्यादा आते थे..मालती सरैया की एंट्री सबसे आखरी में रहती थी.
आखिर प्रोग्राम की शुरुआत हो ही गई.. संचालक ने माइक अपने हाथ में ले के स्त्री शक्ति के बारे में बहुत सारी बाते की..फिर उन्होंने अलग अलग संस्था के प्रमुख को बुलाया..उन्होंने भी अपने प्रवचन दिए..नारियों को किस तरह से आगे बढ़ना चाहिए उस विषय पर बातें की..और नारियो की तारीफ़ करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी..
सब के प्रवचन के बाद संचालक वापस स्टेज पर आये और कहा. अब मै निमंत्रित करता हूँ उस इन्सान को जो एक एक स्त्रियों के दिल में राज करती है.. मै उन्हें आमत्रित करता हूँ की वो आज के दिन अपने विचार प्रगट करे..तो स्वागत है मालती सरैया जी का..
उनका नाम सुनते ही हॉल में बैठी सारी नारियो में से बहुत सी के चहेरे पर ख़ुशी आई और जो अपने पतिदेव के साथ आई थी उनके चहेरे का रंग जैसे उड़ सा गया..क्योकि उन्हें पता था की आज के विषय को देखते वो कैसे मर्दों की हालत करेगी..और उसमे उन्हें ही डांट पड़ेगी..ये ही तो है अपनी भारतीय नारी की मज़बूरी..कि पतिदेव कितना भी गलत कर रहे हो पर उनके खिलाफ वो एक शब्द नहीं बोलती..और न बोलने देती है..
लोगो के बीचो में कानाफूसी शुरू हो गई थी..कितने आदमियों को तो A.C हॉल में बैठे होने के बावजूद पसीना पोछना पडा..
मालती सरैया जैसे ही स्टेज पर आई पूरे हॉल में आते हुए आवाज जैसे थम सी गई . एकदम शांत हो गया पूरा वातावरण.बस उनके चप्पल की एडी की आवाज ही आ रही थी..पूरी श्वेत रंग की सारी में मेरून रंग की बोर्डर वाली साडी ..तना हुआ बदन ..कही से लगता नहीं था की वो ६० साल की महिला थी..
संचालक ने उनका स्वागत हार और श्रीफल से किया..और मालती सरैया को माइक देते हुए कहा की " अब आप अपने शब्दों का उपहार हमें देकर हमारे प्रोग्राम की शोभा बढ़ाइए..
मालती जी ने माइक हाथ में ले कर पूरे हॉल में नजर घुमाई और पुछा" बोलो किस किस को मेरे शब्दों का उपहार चाहिए और किस किस को नहीं " और फिर वो मुस्कराने लगे..
कही से कोई जवाब नहीं आया..
तो उन्होंने बोलना शुरू किया..
" आज महिला दिन, पर मुझे एक बात समझ नहीं आ रही की यहाँ पर बहुत सारे पुरुष वर्ग क्यों शामिल है..यहाँ जिसने प्रोग्राम रखा उन्हें भी मै पूछती हूँ की क्या महिलाओं को पुरुष के हाथो से सन्मान देना ठीक होगा ?"
ये था सब पुरुषो को पहला तमाचा..
" यहाँ पर ज्यादातर पुरुषो को ये लग रहा होगा कि मै यहाँ से उठ के चला जाऊ.. तो जिन्हें ऐसा महसूस हो रहा है वो ख़ुशी से जा सकता है.. पर सिर्फ वो ही लोग जा सकते है जो अपनी पत्नी पर हाथ उठाते हो या दिन रात उनका अपमान करते हो.." अब मालती जी वापस चुप हो गई..और इन्तजार करने लगी की कोई उठ के जाए..
और हॉल में बैठा पुरुष वर्ग सोच में पड़ गया की अगर गए तो यूं लगेगा की हम अपनी पत्नियों को मारते है या उनका अपमान करते है..और अगर नहीं गए तो मालती जी का अपमान सहना है..पर जाने से बेहतर उनको बैठना लगा..
दो मिनिट के इंतज़ार के बाद मालती जी ने वापस माइक उठाया और कहा" चलो लोगो को मेरे से अपमान करवाना शायद ज्यादा पसंद है.."
चलो ठीक है अब हम आज की बात शुरू करे.हम महिला दिन मानते क्यों है ? क्या हम कभी पुरुष दिन मानते है ? और यहाँ जितने पुरुष बैठे है उसमे से ऐसा कोई पुरुष न होगा जो अपनी पत्नी पर गुस्सा नहीं करता होगा..अपमान नहीं करता हो..पर कोई बाहर नहीं गया..और मुझे दुःख इस बात का है किसी पत्नी में भी ये ताकत नहीं थी की वो अपनी पति को कहे की आप बाहर जाओ..आज भी बहुत अच्छे घर के पुरुष महिलाओं पर हाथ उठाते है..और जो शायद ये कहते है की हम हाथ नहीं उठाते है तो पक्का वो शब्दों से उसे जरुर मारते होंगे..पर महिलाए कुछ नहीं कहती ,कारण माता पिता के संस्कार..या वापस जाए तो जाए कहा..?मायके में भी कहा जाता है की हमारे घर पहले ही भरे हुए है ,जैसे तैसे काट डालो ये जिन्दगी..
आप सबको शायद पता नहीं होगा पर आज भी १००% महिलाओं में से ९५% महिलाए बस जिन्दगी पूरी करती है..अगर कोई x-ray मशीन मिल जाये जिससे महिलाओ के मन की बात हम पढ़ सके तो २% महिलाए सन्मान पाती है और दूसरी ३% महिलाए झूठ बोलती है उन्हें सन्मान मिलता है,,और तो भी हम महिला दिन मनाते है..और आज भी मनाएंगे..और हां अगर मै जिन्दा रही तो अगले महिला दिन में मुझे कोई आमंत्रित मत करना..मुझे ये प्रोग्राम में आना बिलकुल पसंद नहीं है..क्योकि यहाँ बोल कर कोई मतलब तो है नहीं..चलो मै रज़ा लेती हूँ
अभी भी हॉल में शमशान सी शांति थी.. और मालती जी ने एक व्यंग भरी मुस्कान के साथ सब के सामने देखा.. तभी ही हॉल में से एक आदमी खडा होके बोला " क्या मै एक सवाल पूछ सकता हु ?"
माल्तीजी खड़ी रही और कहा" वैसे अभी तक मैंने किसी पुरुष को इतना हक नहीं दिया की मुझे कुछ पूछ सके..पर आज हमारा दिन है तो चलो आज आप पूछ लीजिये..पर इतना याद रखना सवाल जाने बिना ही मै कहती हूँ की मेरा जवाब आपको जला देगा फिर मत कहना की माल्तीजी ने ऐसा जवाब दिया..पूछिए.."
मेडम , अभी तक आपने शादी नहीं की उसका कारण क्या ?
क्या आपको कोई पसंद नहीं आया की किसीने आपको पसंद नहीं किया?"
हॉल में से धीमी हंसी की आवाज आई..
माल्तिजी ने हंस के जवाब दिया " भैया बात ये है की..पूरी दुनिया में मुझे ऐसा कोई आदमी ही नहीं मिला जो मेरे शरीर को छुए बिना मुझसे प्रेम करे..अगर तुम्हे कही मिल जाए तो ज़रा भेज देना मै आज भी तैयार हूँ शादी के लिये. "
वो पुरुष सर नीचे करके खडा रह गया माल्तीजी जवाब का इंतज़ार किये बिना चलने लगी लगे..पूरे हॉल में सिर्फ उनके चप्पल की एडी की आवाज सुनाई दे रही थी

Tuesday, March 2, 2010

कड़वी सच्चाई

कहते है के वक़्त ही जख्मो को कम
करता है,
पर – वक़्त ही नए ज़ख्म देता हों तो ?

कहते है की खुश रहने से दुःख कम होते है
पर खुश रहने का कारन ही ना हों तो ?

कहते है बुरे वक़्त में अपनों का साथ शुकून देता है,
पर – अपनों को ही हमारे बुरे वक़्त का पता ना हों तो ?

कहते है प्रेम देने से प्रेम मिलता है ,
पर – प्रेम दे कर भी प्रेम ना मिल पाए तो ?

मैंने सुना है की दुःख बाटने से कम होता है
और
सुख बाटने से बढ़ता है …

अरे दोस्तों पर मैंने तो इसका विपरीत ही देखा , समझा और जाना है …

नीता कोटेचा

Saturday, January 23, 2010

कृपया मुझे समझाइये सही क्या है...

लोगो का कहना है..प्यार कभी कम नहीं होता..हम अपनी उम्मीद बढ़ा देते है..तो मुझे ये समज नहीं आता की जहा प्यार हों वही तो उम्मीद रहती है ना..जहा दुश्मनी हों या झगडे हों वहा कहा उम्मीद होती है..मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है मै उलझ गई हु...कृपया मुझे समझाइये सही क्या है...