Friday, April 29, 2011

दोस्ती



दोस्ती जिंदगी है, शान है, जान है,
अगर दोस्त साथ रहे तो..

नहीं तो

दोस्ती एक भवर है जिंदगी की..
जो जब टूटती है तो,
दिल को लहु लूहान कर देती है,
ना अश्क थमते है और ना ही जिंदगी रहेती है जीने लायक दोस्तों ..

नीता कोटेचा "नित्या"

Monday, April 25, 2011


आज तुम्हारे सारे ख़त पढ़े..
किसी मे लिखा था की तुम्हारे बीना मै जी नहीं पाऊँगी,
किसी मे लिखा था " तू कुछ सोच मत उलटा, मै कभी भी नहीं बदलूंगी.."
किसी मे लिखा था " मै तुम्हारी ही रहूँगी जिंदगी भर "
किसी मे लिखा था " अगर तुम मुझसे कभी दूर हुई तो जान से मार डालूंगी तुम्हें "
आज तुम मेरे बीना जी रही हों,
आज तुम बदल गई हों.,
आज तुम कही भी मुझे दिखाई भी नहीं दे रही हों,
और आज तुम ही मुझसे दूर हों गई हों,
अब तुम ही कहो क्या करूँ ये ख़त का ?
अगर मिटा देती हु तो तुम्हारा प्यार मुझे अब तो सिर्फ इसमें से ही मिलने वाला है..कैसे मिटाउ ?
और अगर नहीं मिटाती हु तो मेरी आंखे रोना बंध नहीं करती..
क्यों ऐसा रिश्ता बंधा जिसमे जब तक साथ थे तुम खुश थी,
पर आज साथ नहीं है तो भी तुम खुश हों...
चलो मै ही तय कर रही हु की प्यार का खोना बर्दाश्त नहीं होगा मुझसे..
भले रो रो के आखे चली जाये ..
तुम्हारी सखी..

नीता कोटेचा "नित्या"

तुम्हें आवाज़ दे के देख लिया..
तुम्हें दिल से
पुकार के देख लिया..


लगता है या मेरी आवाज़ नहीं निकल रही
या फिर तुम्हें मेरी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही..

मैंने तो हर दम तुम्हारा साथ चाहा था..


मैंने तो हर दम तुम्हें पाना चाहा था..
लगता है या मेरा पास रहना तुम्हें अच्छा ना लगा ,
या फिर मेरे करीब आना तुम्हें अच्छा नहीं नहीं ..

इस कदर तो मुह ना मोड़ो,
कि टूट जाए हम,
ना तुम मुझे कभी ढूंढ़ पाओ ,
और ना कभी खुद को पा सके हम

नीता कोटेचा "नित्या

बस एक आख़िरी सास लेनी है अब...
जी को अब आराम देना है अब...
क्यों परेशान करे उसे तेरी यादों से,
सब बातों से उसे आराम देना है अब...

जी किया आख़िरी सास पे तुजे बुला लू,
एक बार पछताने का मौक़ा दे दू..
क्योंकि फिर जो तुम रोओगे वो शायद माँ ना देख सकूँ,
पर नहीं बुलाना तुम्हें जाने दो,
क्योंकि ये ही कहोगे की गलती तुम्हारी थी..
की तुमने मुझसे ज्यादा मुहब्बत की..

इसलिए अब नहीं अब बस...
अब मौक़ा तुम्हें देना नहीं एक भी..
बस तुम रोना नहीं मेरी मौत पे दोस्त,
क्योंकि गलती मेरी थी ना, मुहब्बत तो मैंने की थी ना..
तो मै ना देख पाऊँगी तुम्हें रोते हूवे..

नीता कोटेचा

Friday, April 22, 2011

मनन...........(परवरिश )

आज स्वपनिल और संध्या ने तय किया था कि आज तो वो डॉ. से कहेंगे ही की अब दवाई बदलो क्योंकि....
आज मनन को बुखार में तपते चौथा दिन था ...पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था..आखिर स्वप्निल और संध्या से अब सहा नहीं जा रहा था तो उन्होंने डॉ. से कहा कि क्या हम मनन को किसी अच्छे अस्पताल में दाखिल करवा दे ? डॉ. ने मना कर दिया कि ऐसी कोई जरुरत नहीं है बुखार उतर जाएगा....पर अब वो दोनों माने नहीं और शहर के सबसे अच्छे अस्पताल में मनन को दाखिल करवा दिया गया..
उम्र बहुत काम थी मनन की..सिर्फ सात साल का ही तो था....पर उसे ठीक से होश नहीं आ रहा था. वो नींद में कुछ बोले जा रहा था..क्या बोल रहा था ये किसी को समझ नहीं आ रहा था..|
आखिर में डॉ. ने मनन के माता पिता को अपनी केबिन में बुलाया...और पूछा कि "अब आप लोग मुझे बताये कि जब उसे बुखार आया है उसे पहले आपके घर में कुछ हुआ था ? " स्वप्निल ने जवाब दिया " ऐसा कुछ ख़ास नहीं हुआ था. बस हम दोनों के बीच में छोटा सा झगडा हुआ था....पर ये हम दोनों के बीच बहुत आम सी बात है ....इस बार भी कोई नयी बात नहीं हुई .."
डॉ.बीच में ही गुस्से से बोले " चलता रहता है से मतलब ? तुम लोगो की अपने बच्चे को लेकर कोई जवाबदारी है की नहीं....तुम लोग समझते क्यों नहीं..पहले ये बतायो की झगडा क्या था ?
स्वप्निल थोड़ा डर सा गया..उसने कहा " उस दिन मेरी बीवी के मायके वालो ने पूजा कीर्तन रखा था और हमारे बीच इसी बात को लेकर झगडा हुआ कि उन लोगो ने मुझे इज्ज़त से आमंत्रित करने के लिये फोन नहीं किया.."
और संध्याने कहा था कि " तुम चाहो तो मनन से पूछ लो उसे भी पता है कि मम्मी और पापा दोनों का फोन आया था.....उन लोगो ने बहुत इज्ज़त और सम्मान से हमहे बुलाया है "
पर मैंने ही मनन को बहुत जोर से डांट के पूछा था कि " सच बताओ, कहीं मम्मी ने ही तो नहीं तुम्हे झूठ बोलने को कहा है ...."और वो मेरी इस बात और जोर की आवाज़ से डर गया था और अपनी मम्मी के पीछे छुप गया था..और मै मेरी जिद्द के कारण पूजा में नहीं गया जिसकी वजहे से संध्या रो रो के सो गई..सुबह उठ ने के बाद हमने देखा तो मनन को बहुत तेज़ बुखार था..|
इतना सुनते ही डॉ. ने जोर से अपना हाथ अपने टेबल पे पटका और बोले " तुम लोगो में अक्ल नाम की जैसी चीज है की नहीं..खुद की बात को सही और झूठी साबित करने के लिये एक छोटे बच्चे का सहारा लिया..शर्म आनी चाहिए तुम दोनों को..."
स्वप्निल और संध्या को खुद की गलती समझते देर नहीं लगी .. पर अब क्या ?
आज ८ दिन हो गए पर मनन का बुखार नहीं उतर रहा था. और ना वो ठीक से होश में आ रहा था..
आखिर में डॉ. ने कहा " अब आपके पास एक ही रास्ता है, आप अपनी पत्नी के मायके वालो को बुलाओ औरअच्छे से बाते करो ताकि उन बातो को मनन सुने ....इसी से कुछ फर्क पड़ेगा मनन के मन पर ..जिस से वो कुछ ठीक हो सकता है ......खुद के गुस्से का डर निकालो उसके मन से ...."
बिना वक़्त बर्बाद किये ...स्वप्निल अपने ससुराल गया और अपने ससुर से माफ़ी मांगी और डॉ. ने जो जो बाते उस से कही थी सब जा कर बताई..सास और ससुर तुरंत उसके साथ अस्पताल पहुंचे .और जैसे कि डॉ. ने उन्हें समझाया था वैसे ही उन्होंने किया..और कुछ ही वक़्त में इसका असर मनन की आँखों में देखने को मिला ....वो अपने मम्मी पापा के प्यार को करीब से देख कर कुछ खुश नज़र आ रहा था ......आहिस्ता आहिस्ता मनन का बुखार उतरने लगा..और अगले तीन में वो काफी ठीक भी हो गया ..पर ठीक होने के बाद मनन ने अपनी मम्मी से सबसे पहले ये पूछा " मम्मी , पापा गुस्से में तो नहीं है ना ?"और संध्या ने हँसते हुए उसके बालो को सहला दिया ....
अब डॉ. ने उसे आज घर ले जाने की अनुमति दे दी..स्वप्निल और संध्या को डॉ. ने बुलाया और कहा " तुम्हारे लिये जो बहुत छोटी सी बात होती है वो कभी कभी बच्चों के लिये बहुत बड़ी बात ...इस जीवन का आधार बन जाती है ..उनके मन में वो ऐसी कुंठा को जन्म देती है कि उनके जीने का आधार ही बदल जाता है ..वो माता पिता के झगड़ो को सह नहीं सकते..... अब मै ये ही कहूँगा कि आगे से उसके सामने बहुत संभाल कर बात करना"|
उस दिन से स्वप्निल और संध्या ने अपने जीने का तरीका ही बदल लिया और घर में हर पल ख़ुशी से भरा वातावरण रखने लगे.. उन्होंने समझ लिया था कि बच्चों को बहुत ही प्रेम से और ध्यान से बड़ा करना ही उनका कर्तव्य है |
स्वप्निल सोच रहा था कि हम अपने अभिमान , मान , अपमान के चक्कर में अपने ही बच्चों को अपनी ही बातो से परेशान करते रहते है और छोटी छोटी बातो पर हम सबका कभी ध्यान भी नहीं जाता.. बच्चों के मन को पढ़ना बहुत जरुरी है ...नहीं तो भगवान ने दिए हुए फूल को मुरझा जाने में देर नहीं लगेगी ..और हमने भगवान का अपमान किया ऐसा ही कहलाएगा .........

Wednesday, April 20, 2011

विश्वास की डोर

जैसे जैसे अंधेरी(मुंबई ) स्टेशन नज़दीक आता गया मौनी के मन में घबराहट वैसे वैसे बढती जा रही थी , मौनी अंधेरी के एक कॉलेज में प्रोफेसर थी .कॉलेज में सब उससे डरते थे|पर पिछले ४ महीनो से मौनी अपने ही कॉलेज के प्रोफ़ेसर गाँधी से..आमना सामना होने पर डरने लगी थी..उसे ये ही डर था कि अगर किसी ने ..या खुद प्रोफ़ेसर गाँधी ने उसे चोर नज़रो से देखते हुए ... देख लिया तो..??????
मौनी को वो दिन याद आता था जब उसकी मम्मी उसे कहती थी "मौनी शादी कर ले., मेरे लिये तू शादी नहीं करके गलती कर रही हो ,मेरे जाने के बाद तुम पूरी जिंदगी अकेली कैसे जीएगी .और उम्र बढ़ जाने के बाद कोई मिलेगा भी नहीं...जो तुम्हारा जीवन साथी बन सके..और हर बार मौनी ने मम्मी की बात को सुन कर अनसुना कर दिया .... अब मौनी को बहुत बार मम्मी की बात याद आती थी. ... बहुत बार ऐसा होता था कि उसे लगता था की इस वक़्त कोई ना हो जिसके साथ वो अपने दिल की...अपनी दिनचर्या की सभी बाते उसके साथ कर सके ,...अपने दिल का गम हल्का कर सके..|पर अब बहुत देर हो चुकी थी ....वक़्त उसके हाथो से किसी मछली सा फिसल चुका था ...अब ये बात सोचकर खुद को दुःख देने का कोई मतलब नहीं .... पर दिल और दिमाग की लड़ाई उसके अपने वश में नहीं थी...
हमारे ना चाहने पर भी ....दिमाग में उठने वाली सोच खुदबखुद किसी बिन बुलाये मेहमान की तरह उसके करीब चली आती थी ...|
कभी कभी दिल करता था की बच्चों से थोडा हँसी .. मज़ाक करे ..उनसे बाते करे ...पर कभी ऐसा वो कर नहीं पाई .....पूरी जिन्दगी खुद को उदासी के खोल में बंध रखा औरअपनी गुस्से वाले प्रतिरूप अब यूँ अचानक .कैसे वो सबके सामने थोड दे |प्रोफ़ेसर गाँधी का यूँ अचानक उसकी जिंदगी में ...उस से पूछे बिना आना,...उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अब ये ४४ की उम्र में किस्मत उसे क्या दिखाने वाली थी? प्रोफ़ेसर गाँधी अपनी उम्र के ४७ साल पूरे कर चुके थे ..,,उन्होंने भी शादी नहीं की थी |जैसा वो पहले दिन से सुनती आई थी कि प्रोफ़ेसर बहुत गुस्से वाले है ...पर उनसे मिलने के बाद पता चला कि ...वो बहुत ही हँसमुख इन्सान थे..बिंदास हँसते और हँसाते थे और मौनी ने तो अपनी जिन्दगी में कभी किसी को हँसते हुए देखा ही नहीं था....जिसकी वजह से अब मौनी हँसना ही भूल गई थी..|
कभी कभी जिन्दगी के आस पास हम ही ऐसा वातावरण खड़ा कर देताहै कि ना चाहते हुए भी उसी के मकडजाल में फसं कर रह जाते हैं |
अंधेरी स्टेशन आ गया ....वो दरवाजे के पास ही खड़ी थी और उसने देखा प्रोफ़ेसर गाँधी तो पहले से ही उसका इंतजार कर रहे थे....बहुत दिनों से उन दोनों का ये नित्य क्रम हो गया था....वो ध्यान भी तो बहुत रखते थे मौनी का..
वो जब जब मिलते थे तब तो जैसे मौनी हँसने के अलावा कुछ काम ही नहीं करती थी..और अलग होने के बाद भी तो वो दोनों दिन में दो बार फोन पर बात कर ही लेते थे..
मौनी कभी कभी अपने इस रिश्ते को लेके डर सी जाती थी..पर जब भी प्रोफ़ेसर को देखती वो डर भूल जाती....ना चाहते हुए भी वो दिनोदिन उनके करीब होती जा रही थी ...रोज कॉलेज के लिये जल्दी निकलना .. दोनों का साथ में मिल के चाय नाश्ता करना और फिर कॉलेज में एक साथ जाना .....
आज भी जब से मिले तब से मौनी का हँसना ही शुरू था..दोनों नाश्ता कर रहे थे तभी प्रोफेसर ने मौनी से पूछा ''मौनी, तुमने मुझे ये तो बताया कि तुमने शादी नहीं की ..अपनी मम्मी के लिये,पर तुमने मुझ से कभी नहीं पूछा कि मैंने शादी क्यों नहीं की..?"
मौनी की धड़कन जैसे रुक सी गई, उसे पता नहीं था कि प्रोफ़ेसर अपनी बात किस रूप में उसके सामने रखेगे ...वो ये तो जानती थी कि ये बात कभी ना कभी तो उठेगी ही|
मौनी ने खुद को संभालते हुए कहा कि " आप ही बता दो कि ''क्यों नहीं की शादी ?"
तब प्रोफ़ेसर ने कहा " मुझे एक लडकी पसंद थी जो मेरे साथ पढ़ती थी., उसकी शादी किसी और से हो गई..तब से मै किसी और मै फिर कभी किसी को अपने ह्रदय में स्थान नहीं दे पाया|
मौनी ने प्रश्नवाचक नज़रों से उनकी तरफ देखा जैसे पूछ रही हो "क्या अब वो प्यार तुमने मुझे में भी नहीं देखा ?
तभी प्रोफ़ेसर बोले " नजरो से मत पूछो मौनी जो पूछना है जोर से पूछो ना..".....कुछ देर की खामोशी और स्त्बधता के बाद मौनी की नजर शर्म से झुक गई ..|
तभी प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ से उसका चेहरा ऊपर किया..मौनी जैसे कांप सी गई..पहली बार उसको किसी पुरुँष ने छुआ था.. उसने डर और हया से अपनी आँखे बंद कर ली|तभी प्रोफ़ेसर ने कहा " मौनी शायद भगवान को ये ही मंज़ूर था कि हम दोनों मिले इसीलिए हमारी शादी उस वक्त नहीं हुई ..अब हमें सच्चे साथ और साथी के प्यार की जरुरत है जो हमें एक दूसरे से ही मिल सकती है..अब हम जिंदगी को अच्छे से समझने लगे है ..इस से पहले कि वक्त हमें फिर से अकेला कर दे उससे पहले आयो ..... हम एक हो जाए..
और उस वक़्त प्यार और विश्वास की डोर में बंधी मौनी ने प्रोफ़ेसर का हाथ कस के पकड़ लेती है .