Monday, April 25, 2011


बस एक आख़िरी सास लेनी है अब...
जी को अब आराम देना है अब...
क्यों परेशान करे उसे तेरी यादों से,
सब बातों से उसे आराम देना है अब...

जी किया आख़िरी सास पे तुजे बुला लू,
एक बार पछताने का मौक़ा दे दू..
क्योंकि फिर जो तुम रोओगे वो शायद माँ ना देख सकूँ,
पर नहीं बुलाना तुम्हें जाने दो,
क्योंकि ये ही कहोगे की गलती तुम्हारी थी..
की तुमने मुझसे ज्यादा मुहब्बत की..

इसलिए अब नहीं अब बस...
अब मौक़ा तुम्हें देना नहीं एक भी..
बस तुम रोना नहीं मेरी मौत पे दोस्त,
क्योंकि गलती मेरी थी ना, मुहब्बत तो मैंने की थी ना..
तो मै ना देख पाऊँगी तुम्हें रोते हूवे..

नीता कोटेचा

1 comment:

Sawan said...

नीता जी बहुत ही खूब लिखती है आप। क्षमा चाहता हूँ सिर्फ ऐक पोस्ट पर टिप्पणीवदे रहा हूँ और बिना आपसे पूछेवबहुत सी रचनाऐ फेस बुक पर पोस्ट कर रहा हूँ। लेकिन सभी बतौर रचनाकार आपके नाम के साथ।
काश हमें भी ये हुनर आता तो जिंदगी से मिली कुछ नसिहतें हम भी शायराना कर दिऐ होते।